प्रस्तावना
कर्म और पुनर्जन्म की अवधारणा भारतीय दर्शन, हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में गहराई से स्थापित है। यह विचार केवल आध्यात्मिक मान्यता ही नहीं, बल्कि जीवन के नैतिक और दार्शनिक पहलुओं को भी समझाने का प्रयास करता है। यह सिद्धांत कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति के कर्म उसके वर्तमान और भविष्य के जीवन को प्रभावित करते हैं। आइए इस अवधारणा को विस्तार से समझते हैं।
1. कर्म की परिभाषा और उसका महत्व
- कर्म का शाब्दिक अर्थ “क्रिया” या “कार्य” होता है।
- हिंदू धर्म में कर्म तीन प्रकार के होते हैं:
- संचित कर्म (Accumulated Karma) – पिछले जन्मों के संचित कर्म।
- प्रारब्ध कर्म (Destined Karma) – इस जन्म में मिलने वाले फल।
- क्रियमान कर्म (Current Karma) – वर्तमान जीवन में किए गए कर्म।
- गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
अर्थात, मनुष्य को केवल कर्म करने का अधिकार है, लेकिन फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।

2. पुनर्जन्म की अवधारणा
- पुनर्जन्म (Reincarnation) का अर्थ आत्मा का एक शरीर छोड़कर नए शरीर में प्रवेश करना है।
- यह सिद्धांत आत्मा की अमरता और कर्म के प्रभाव को दर्शाता है।
- उपनिषदों और भगवद गीता के अनुसार, आत्मा नश्वर शरीर को छोड़कर नए शरीर में प्रवेश करती है, ठीक उसी प्रकार जैसे पुराने वस्त्र छोड़कर नए वस्त्र धारण किए जाते हैं।
3. भारतीय मिथोलॉजी में कर्म और पुनर्जन्म
(i) राजा भरत की कथा (श्रीमद्भागवत महापुराण)
- राजा भरत, जो एक महान तपस्वी थे, अंतिम समय में एक हिरण के बारे में सोच रहे थे।
- इसके कारण अगले जन्म में उन्हें हिरण का शरीर मिला।
- यह कथा दर्शाती है कि मृत्यु के समय की सोच और कर्म का प्रभाव पुनर्जन्म पर पड़ता है।
(ii) अजातशत्रु और उनके पापों का फल
- महाभारत में अजातशत्रु ने कई पाप किए, लेकिन अंत में वह ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष की ओर बढ़ा।
- यह सिद्ध करता है कि कर्मों का प्रभाव मृत्यु के बाद भी बना रहता है।
(iii) महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिवर्तन
- वाल्मीकि पहले एक डाकू थे, लेकिन कर्म परिवर्तन से वे महान ऋषि बन गए।
- यह दिखाता है कि मनुष्य अपने कर्मों को सुधारकर पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो सकता है।
4. बौद्ध और जैन दर्शन में कर्म और पुनर्जन्म
- बौद्ध धर्म:
- बुद्ध के अनुसार, कर्म हमारे पुनर्जन्म को निर्धारित करता है।
- निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करने के लिए अच्छे कर्म आवश्यक हैं।
- जैन धर्म:
- कर्म के बंधन से आत्मा मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकती है।
- अहिंसा और सत्य पालन से पुनर्जन्म के चक्र से बचा जा सकता है।
5. आधुनिक दृष्टिकोण और वैज्ञानिक अध्ययन
- कुछ शोधकर्ताओं ने पुनर्जन्म से संबंधित घटनाओं को दर्ज किया है, जिनमें छोटे बच्चे अपने पिछले जन्म की बातें बताते हैं।
- हिप्नोथेरेपी और पास्ट लाइफ रिग्रेशन (Past Life Regression) के माध्यम से भी पुनर्जन्म की संभावनाएँ अध्ययन की गई हैं।
निष्कर्ष
कर्म और पुनर्जन्म की अवधारणा केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि जीवन को नैतिक रूप से जीने का एक मार्गदर्शन भी प्रदान करती है। यह हमें यह सिखाती है कि प्रत्येक कर्म का परिणाम होता है, और अच्छे कर्मों से ही हम अपने जीवन और आत्मा को उन्नत कर सकते हैं। कर्म के अनुसार ही हमारा भविष्य और पुनर्जन्म निर्धारित होता है, और अंततः मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करने का यही मार्ग है।

अचार्य अभय शर्मा एक अनुभवी वेदांताचार्य और योगी हैं, जिन्होंने 25 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय आध्यात्मिकता का गहन अध्ययन और अभ्यास किया है। वेद, उपनिषद, और भगवद्गीता के विद्वान होने के साथ-साथ, अचार्य जी ने योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की राह दिखाने का कार्य किया है। उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, योग, और वेदांत के सिद्धांतों की सरल व्याख्या मिलती है, जो साधारण लोगों को भी गहरे आध्यात्मिक अनुभव का मार्ग प्रदान करती है।