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Unlocking the Secrets of Rahu-Ketu: What You Need to Know

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राहु-केतु के रहस्य: आपको क्या जानने की आवश्यकता है

भारतीय ज्योतिष में, राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है, और वे वैदिक ज्योतिष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये वास्तविक ग्रह नहीं हैं, बल्कि चंद्रमा की कक्षा के दो प्रतिच्छेदन बिंदु हैं – उत्तरी चंद्र नोड (राहु) और दक्षिणी चंद्र नोड (केतु)। जबकि भौतिक रूप से अदृश्य, उन्हें ज्योतिषीय रूप से शक्तिशाली माना जाता है और माना जाता है कि ये हमारे जीवन के कई पहलुओं, जैसे कि भाग्य, कर्म और जीवन के सबक को प्रभावित करते हैं।

राहु-केतु क्या हैं?

पौराणिक कथा के अनुसार, राहु और केतु एक ही असुर के दो भाग हैं, जिसे समुद्र मंथन के दौरान भगवान विष्णु द्वारा मोहित रूप धारण करके अमरता का अमृत पीने से रोका गया था। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से असुर को काट दिया, लेकिन चूंकि अमृत उसके गले तक पहुंच गया था, इसलिए सिर अमर रहा और राहु बन गया, और धड़ केतु बन गया। इस पौराणिक कथा के कारण ही राहु और केतु में हमेशा एक-दूसरे के प्रति शत्रुता और ग्रह मंडल में उल्टी दिशा में घूमने की प्रवृत्ति दिखाई जाती है।

ज्योतिषीय रूप से, राहु-केतु को छाया ग्रह माना जाता है क्योंकि वे वास्तविक ग्रह नहीं हैं। वे गणना किए गए बिंदु हैं जो सूर्य और चंद्रमा की कक्षाओं के परस्पर क्रिया के कारण बनते हैं। ये बिंदु आकाशीय क्षेत्र में राशि चक्र के विपरीत दिशा में चलते हैं और हमेशा 180 डिग्री अलग रहते हैं।

राहु-केतु का महत्व

वैदिक ज्योतिष में, राहु और केतु का गहरा महत्व है। उन्हें कर्म फलदाता माना जाता है, यानि वे हमारे पिछले कर्मों के फल देते हैं। माना जाता है कि राहु भौतिक इच्छाओं, भ्रम, जुनून और भौतिक दुनिया से मोह का प्रतिनिधित्व करता है। यह महत्वाकांक्षा, विदेशी भूमि, अचानक घटनाओं और अप्रत्याशित परिस्थितियों से भी जुड़ा है। दूसरी ओर, केतु आध्यात्मिकता, वैराग्य, अंतर्ज्ञान, मुक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतीक है। यह अलगाव, पूर्वजन्म के संबंध, रहस्यवाद और गूढ़ विषयों से भी जुड़ा है।

आपकी कुंडली में राहु-केतु का प्रभाव

आपकी जन्म कुंडली में राहु और केतु की स्थिति आपके जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है। वे जिस राशि और भाव में स्थित हैं, उसके आधार पर वे विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं, जैसे कि:

राहु का प्रभाव:

केतु का प्रभाव:

राहु-केतु दोष और निवारण

ज्योतिष में, कुछ विशेष स्थितियों में राहु और केतु को दोष कारक माना जाता है, जिन्हें "राहु-केतु दोष" कहा जाता है। सबसे प्रसिद्ध दोषों में से एक कालसर्प दोष है, जो तब बनता है जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच स्थित होते हैं। माना जाता है कि ऐसे दोष जीवन में बाधाएं, चुनौतियां और संघर्ष पैदा करते हैं।

हालांकि, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि राहु-केतु हमेशा नकारात्मक नहीं होते हैं। उनका प्रभाव कुंडली में उनकी स्थिति, अन्य ग्रहों के साथ युति और जातक की दशा पर निर्भर करता है। इसके अलावा, दोषों को हमेशा नकारात्मक नहीं मानना ​​चाहिए बल्कि उन्हें जीवन में सीखने और बढ़ने के अवसर के रूप में देखना चाहिए।

राहु-केतु के नकारात्मक प्रभावों को कम करने और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए कई निवारण उपाय बताए गए हैं, जैसे:

निष्कर्ष

राहु और केतु वैदिक ज्योतिष के रहस्यमय और शक्तिशाली छाया ग्रह हैं। वे हमारे कर्म, भाग्य और जीवन के महत्वपूर्ण पाठों को दर्शाते हैं। उन्हें समझना हमें अपनी ताकत और कमजोरियों को पहचानने में मदद कर सकता है और हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार कर सकता है। भले ही उन्हें अक्सर अशुभ माना जाता है, राहु-केतु वास्तव में परिवर्तनकारी ग्रह हैं जो हमें आध्यात्मिक विकास और आत्म-ज्ञान की ओर ले जा सकते हैं। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि ज्योतिष एक मार्गदर्शन प्रणाली है, और राहु-केतु के प्रभाव को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से समझा जा सकता है। सही उपायों और समझ के साथ, हम राहु-केतु की ऊर्जा को अपने पक्ष में उपयोग कर सकते हैं और एक समृद्ध और सार्थक जीवन जी सकते हैं।

अस्वीकरण: यह लेख सामान्य जानकारी के लिए है और इसे ज्योतिषीय सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। अपनी व्यक्तिगत कुंडली के बारे में विशिष्ट सलाह के लिए हमेशा एक योग्य ज्योतिषी से परामर्श करें।

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