क्या आप लोग धूमावती माता Dhumavati Mata जी के बारे में जानना चाहते हैं? नमस्कार दोस्तों, दस महाविद्याओं में सातवीं महाविद्या धूमावती माता Dhumavati Mata जी हैं।
- इनका स्वरूप अन्य देवी स्वरूपों से बिल्कुल भिन्न और रहस्यमयी है।
- मां धूमावती Dhumavati Mata जी की जयंती ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बड़े श्रद्धा भाव से मनाई जाती है।
धूमावती स्वरूप को क्या कहा जाता है
- ऋग्वेद में मां सती जी के धूमावती स्वरूप को “सुतरा” कहा गया है, जो उनके ज्ञान, त्याग और तप की प्रतीक है।
- धूमावती माता Dhumavati Mata जी को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे ज्येष्ठा, अलक्ष्मी, और निर्ऋति।
- ये नाम उनके उस रूप को दर्शाते हैं जो वैराग्य, त्याग और तपस्या का प्रतीक है।
- मां धूमावती Dhumavati Mata जी का स्वरूप अत्यंत प्रभावशाली है।
- वे विधवा रूप में प्रकट होती हैं, उनका चेहरा गंभीर और आंखें तेज होती हैं।
- उनके केश खुले हुए, शरीर दुबला-पतला होता है और वे सफेद साड़ी धारण करती हैं, जो उनके विरक्ति और तप के जीवन को दर्शाता है।
मां की 2 भुजाएं देखने को मिलती है
मां की दो भुजाएं होती हैं, जिनमें से एक हाथ में सूप होता है और दूसरा वरदान मुद्रा में होता है। सूप को प्रतीक रूप में देखा जाए तो यह संसार की अस्थिरता, माया और ममता के त्याग का संदेश देता है। वहीं वरदान मुद्रा यह दर्शाती है की मां अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं और उनके कष्टों को दूर करती हैं।
धूमावती माता Dhumavati Mata जी की पूजा विशेष रूप से उन लोगों द्वारा की जाती है जो जीवन में कठिनाइयों से गुजर रहे होते हैं या जिन्हें मानसिक और आत्मिक शक्ति की आवश्यकता होती है। साधक इस दिन व्रत रखते हैं और मां के विशेष मंत्रों से आराधना करते हैं।
माना जाता है की मां धूमावती Dhumavati Mata जी की कृपा से शत्रु पर विजय, दुखों से मुक्ति और गूढ़ ज्ञान की प्राप्ति होती है। उनका यह स्वरूप हमें सिखाता है की जीवन में त्याग, धैर्य और आत्मबल से सभी संकटों पर विजय पाई जा सकती है, जय मां धूमावती Dhumavati Mata जी की ।
निष्कर्ष
यहां पर आपको बताया गया है की मां धूमावती जी का Dhumavati Mata जी की जयंती ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को पूरे देश में मनाई जाती है। इसके अलावा मां धूमावती जी का Dhumavati Mata स्वरूप कैसा होता है इसके बारे में भी जानकारी दी गई है।
