प्रस्तावना
यमुना नदी केवल एक जलधारा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, भक्ति और इतिहास का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। इसे भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से गहराई से जोड़ा जाता है। यमुना तट पर ही श्रीकृष्ण ने अपना बाल्यकाल बिताया और अनेक अद्भुत लीलाएँ रचीं। आइए जानते हैं यमुना नदी और भगवान कृष्ण के बीच के दिव्य संबंध को।
1. यमुना नदी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
- यमुना नदी को पवित्र नदियों में गिना जाता है और इसे देवी का स्वरूप माना जाता है।
- यह सूर्यदेव की पुत्री और यमराज की बहन मानी जाती है।
- कार्तिक मास में यमुना स्नान का विशेष महत्व बताया गया है, जिससे सभी पापों का नाश होता है।

2. भगवान कृष्ण और यमुना नदी का संबंध
(i) श्रीकृष्ण का यमुना में अवतरण
- जब श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ, तब वसुदेव उन्हें टोकरी में रखकर गोकुल ले जा रहे थे।
- यमुना नदी ने उनके मार्ग में जल को नीचे कर दिया और श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श किए।
- यह श्रीकृष्ण और यमुना का पहला दिव्य संपर्क माना जाता है।
(ii) कालिय नाग का वध
- गोकुल में एक विशाल कालिया नाग यमुना नदी के जल को विषैला बना रहा था।
- श्रीकृष्ण ने उस नाग के फन पर नृत्य किया और उसे परास्त कर यमुना को शुद्ध किया।
- इस घटना को ‘कालिय मर्दन’ कहा जाता है।
(iii) गोपियों के साथ यमुना तट पर रासलीला
- वृंदावन के यमुना तट पर भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला रचाई।
- इस लीला को आध्यात्मिक प्रेम और भक्ति का सर्वोच्च रूप माना जाता है।
(iv) यमुना तट पर गोवर्धन पूजा
- जब इंद्रदेव ने गोकुलवासियों पर मूसलधार वर्षा की, तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया।
- यह लीला यमुना तट के पास ही संपन्न हुई थी।
3. यमुना नदी का वर्तमान स्वरूप
- प्राचीनकाल में यमुना नदी स्वच्छ और निर्मल थी, लेकिन वर्तमान में यह प्रदूषण का शिकार हो चुकी है।
- कृष्ण भक्तों के लिए यह आज भी उतनी ही पवित्र है, और इसके संरक्षण के लिए कई अभियान चलाए जा रहे हैं।
निष्कर्ष
यमुना नदी केवल एक प्राकृतिक जलधारा नहीं, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं का साक्षी स्थल है। इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अनंत है। आज हमें इसे पवित्र और स्वच्छ बनाए रखने के लिए जागरूकता और संरक्षण की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस दिव्य धरोहर से जुड़ सकें।

अचार्य अभय शर्मा एक अनुभवी वेदांताचार्य और योगी हैं, जिन्होंने 25 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय आध्यात्मिकता का गहन अध्ययन और अभ्यास किया है। वेद, उपनिषद, और भगवद्गीता के विद्वान होने के साथ-साथ, अचार्य जी ने योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की राह दिखाने का कार्य किया है। उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, योग, और वेदांत के सिद्धांतों की सरल व्याख्या मिलती है, जो साधारण लोगों को भी गहरे आध्यात्मिक अनुभव का मार्ग प्रदान करती है।