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    भारत का पारंपरिक अनाज: बाजरा, फिर से छाया

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    भारत का पारंपरिक अनाज: बाजरा, फिर से छाया

    खोया हुआ खजाना – फिर से चमक रहा है!

    भारतीय रसोई सदियों से विविधता और पौष्टिकता का खजाना रही है। इसमें कई ऐसे अनाज छिपे हुए हैं जो न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए अद्भुत हैं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपरा का भी अटूट हिस्सा हैं। इनमें से एक ऐसा ही रत्न है – बाजरा। एक समय था जब बाजरा भारत के ग्रामीण इलाकों में भोजन का एक अभिन्न अंग था, लेकिन समय के साथ, आधुनिकता की दौड़ में यह कहीं गुम सा हो गया। खुशी की बात यह है कि अब बाजरा फिर से छाया में लौट रहा है – एक स्वस्थ और टिकाऊ भविष्य की उम्मीद बनकर।

    बाजरा क्या है?

    बाजरा वास्तव में मोटे अनाजों के समूह का नाम है, जिसमें पर्ल मिलेट (सबसे आम बाजरा), फिंगर मिलेट (रागी), फॉक्सटेल मिलेट (कंगनी), प्रोसो मिलेट (चेना), और कोदो मिलेट जैसे प्रकार शामिल हैं। इनमें से, पर्ल मिलेट, जिसे आमतौर पर बाजरा के नाम से जाना जाता है, भारत में खासकर राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों में उगाया जाता है। यह छोटा, गोल आकार का अनाज सूखा-सहनशील होता है और कम उपजाऊ मिट्टी में भी आसानी से फल-फूल सकता है।

    फिर से छाया में क्यों?

    पिछले कुछ वर्षों में, लोगों के बीच स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता ने पारंपरिक अनाजों की ओर ध्यान खींचा है। बाजरे का ‘फिर से छाया’ बनने के पीछे कई कारण हैं:

    • स्वास्थ्य का खजाना: बाजरा पोषक तत्वों से भरपूर होता है। यह फाइबर, प्रोटीन, आयरन, मैग्नीशियम और फास्फोरस जैसे महत्वपूर्णminerals और vitamins का एक उत्कृष्ट स्रोत है। यह ग्लूटेन-फ्री भी होता है, जो इसे ग्लूटेन असहिष्णुता या सीलिएक रोग वाले लोगों के लिए एक आदर्श विकल्प बनाता है। बाजरा पाचन को सुधारने, रक्त शर्करा को नियंत्रित करने और हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करता है। यह वजन प्रबंधन में भी सहायक है क्योंकि यह लंबे समय तक पेट भरा रखता है और कम कैलोरी वाला होता है।
    • पर्यावरण के अनुकूल: बाजरे की खेती के लिए चावल और गेहूं जैसे अनाजों की तुलना में बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है। यह सूखा-सहनशील फसल है और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीला है। बाजरे की खेती मिट्टी की उर्वरता को भी बनाए रखने में मदद करती है और इसके लिए कम रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की आवश्यकता होती है, जिससे यह पर्यावरण के लिए एक टिकाऊ विकल्प बन जाता है।
    • किसानों के लिए फायदेमंद: बाजरे की खेती कम लागत वाली और अधिक टिकाऊ है, खासकर उन क्षेत्रों के लिए जहां पानी की कमी है। यह किसानों को कम जोखिम और स्थिर आय प्रदान करता है, जिससे यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में मदद करता है।
    • सरकारी प्रोत्साहन: सरकार भी पारंपरिक अनाजों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है। बाजरे को ‘पोषक अनाज’ के रूप में मान्यता देना और इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में शामिल करना इसके पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
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    आधुनिक रसोई में बाजरा

    आज, शहरों से लेकर गांवों तक, लोग बाजरे को अपने भोजन में दोबारा शामिल कर रहे हैं।

    • पारंपरिक व्यंजन: बाजरे से रोटी, भाकरी, खिचड़ी, दलिया और लड्डू जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं जो सदियों से भारतीय घरों में खाए जाते रहे हैं। ये व्यंजन स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होते हैं।
    • आधुनिक नवाचार: बाजरे को अब आधुनिक व्यंजनों में भी शामिल किया जा रहा है। इससे पास्ता, नूडल्स, पैनकेक, मफिन्स, और यहां तक कि नाश्ते के अनाज भी बनाए जा रहे हैं। इंटरनेट पर आपको बाजरे से बनने वाली अनगिनत स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक रेसिपी आसानी से मिल जाएंगी।
    • बाजार में उपलब्धता: अब बाजरा आसानी से सुपरमार्केट और ऑनलाइन स्टोर्स में उपलब्ध है। बाजरे का आटा, साबुत बाजरा और बाजरा-आधारित उत्पादों की बढ़ती मांग इसकी लोकप्रियता का प्रमाण है। रेस्तरां और कैफे भी अब अपने मेनू में बाजरे के व्यंजन शामिल कर रहे हैं।

    निष्कर्ष

    बाजरा केवल एक अनाज नहीं है, यह भारत की समृद्ध कृषि विरासत का प्रतीक है। यह न केवल पौष्टिक है, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल और किसानों के लिए भी फायदेमंद है। बाजरे का ‘फिर से छाया’ बनना एक सकारात्मक बदलाव है जो हमें स्वस्थ और टिकाऊ भविष्य की ओर ले जा सकता है। तो आइए, बाजरे को अपनी रसोई में लाएं और इस पारंपरिक अनाज के स्वाद और पौष्टिकता का आनंद लें! यह न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, बल्कि हमारी संस्कृति और पर्यावरण के लिए भी एक बेहतरीन कदम है।

    चलिए, बाजरे को फिर से मुख्यधारा में लाएं और इसकी चमक को और रोशन करें!

    अचार्य अभय शर्मा एक अनुभवी वेदांताचार्य और योगी हैं, जिन्होंने 25 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय आध्यात्मिकता का गहन अध्ययन और अभ्यास किया है। वेद, उपनिषद, और भगवद्गीता के विद्वान होने के साथ-साथ, अचार्य जी ने योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की राह दिखाने का कार्य किया है। उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, योग, और वेदांत के सिद्धांतों की सरल व्याख्या मिलती है, जो साधारण लोगों को भी गहरे आध्यात्मिक अनुभव का मार्ग प्रदान करती है।

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