अष्टावक्र गीता(मूल संस्कृत) | अष्टावक्र गीता(हिंदी भावानुवाद) | Ashtavakra Gita (English) |
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जनक उवाच- तत्त्वविज्ञानसन्दंश- मादाय हृदयोदरात्। ना नाविधपरामर्श- शल्योद्धारः कृतो मया॥१९- १॥ | राजा जनक कहते हैं – तत्त्व-विज्ञान की चिमटी द्वारा विभिन्न प्रकार के सुझावों रूपी काँटों को मेरे द्वारा हृदय के आन्तरिक भागों से निकाला गया ॥१॥ | King Janak says – Using the hook of self-knowledge, thorns of various opinions have extracted out from inside of heart by me . ॥1॥ |
क्व धर्मः क्व च वा कामः क्व चार्थः क्व विवेकिता। क्व द्वैतं क्व च वाऽद्वैतं स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥१९- २॥ | अपनी महिमा में स्थित मेरे लिए क्या धर्म है और क्या काम है, क्या अर्थ है और क्या विवेक है, क्या द्वैत है और क्या अद्वैत है?॥२॥ | There are no righteousness and duty, no objective or discretion, no duality or non-duality for me, who is established in Self . ॥2॥ |
क्व भूतं क्व भविष्यद् वा वर्तमानमपि क्व वा। क्व देशः क्व च वा नित्यं स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥१९- ३॥ | अपनी महिमा में स्थित मेरे लिए क्या अतीत है और क्या भविष्य है और क्या वर्तमान ही है, क्या देश है और क्या काल है? ॥३॥ | There is no past, future or present, there is no space or time f or me , who is established in Self . ॥3॥ |
क्व चात्मा क्व च वानात्मा क्व शुभं क्वाशुभं त था। क्व चिन्ता क्व च वाचिन्ता स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥१९- ४॥ | अपनी महिमा में स्थित मेरे लिए क्या आत्मा है और क्या अनात्मा है तथा क्या शुभ और क्या अशुभ है, क्या विचारयुक्त होना है और क्या निर्विचार होना है? ॥४॥ | There is no self or non-self, nothing auspicious or evil, no thought or absence of them f or me, who is established in Self . ॥4॥ |
क्व स्वप्नः क्व सुषुप्तिर्वा क्व च जागरणं तथा। क्व तुरियं भयं वापि स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥१९- ५॥ | अपनी महिमा में स्थित मेरे लिए क्या स्वप्न है और क्या सुषुप्ति तथा क्या जागरण है और क्या तुरीय अवस्था है अथवा क्या भय ही है ? ॥५॥ | There are no states as dreams or sleep or waking. There is no fourth state ‘Turiya’ beyond these, and no fear f or me , who is established in Self . ॥5॥ |
क्व दूरं क्व समीपं वा बाह्यं क्वाभ्यन्तरं क्व वा। क्व स्थूलं क्व च वा सूक्ष्मं स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥१९- ६॥ | अपनी महिमा में स्थित मेरे लिए क्या दूर है और क्या पास है तथा क्या बाह्य है और क्या आतंरिक है, क्या स्थूल है और क्या सूक्ष्म है ? ॥६॥ | There is nothing distant or near, nothing within or without, nothing large or subtle f or me , who is established in Self . ॥6॥ |
क्व मृत्युर्जीवितं वा क्व लोकाः क्वास्य क्व लौकिकं। क्व लयः क्व समाधिर्वा स्वमहिम्नि स्थितस्य मे॥१९- ७॥ | अपनी महिमा में स्थित मेरे लिए क्या मृत्यु है और क्या जीवन है तथा क्या लौकिक है और क्या पारलौकिक है, क्या लय है और क्या समाधि है ? ॥७॥ | There is no life or death, not this world or any outer world, no annihilation or meditative state f or me , who is established in Self . ॥7॥ |
अलं त्रिवर्गकथया योगस्य कथयाप्यलं। अलं विज्ञानकथया विश्रान्तस्य ममात्मनि॥१९- ८॥ | अपनी आत्मा में नित्य स्थित मेरे लिए जीवन के तीन उद्देश्य निरर्थक हैं, योग पर चर्चा अनावश्यक है और विज्ञानं का वर्णन अनावश्यक है ॥८॥ | For me who has taken eternal refuge in Self, discussion on three goals of life is useless, discussion on yoga is useless, discussion on knowledge is useless . ॥8॥ |
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