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    महाशिवरात्रि पर क्यों नहीं खाना चाहिए प्याज और लहसुन? जानें व्रत के नियम

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    महाशिवरात्रि व्रत में क्या खाएं और क्या नहीं? पूरी जानकारी यहां

    महाशिवरात्रि हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र त्योहार है, जो भगवान शिव की आराधना और उपासना के लिए समर्पित है। इस दिन व्रत रखने और शिवजी की पूजा करने का विशेष महत्व है। व्रत के दौरान कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक माना जाता है, जिनमें आहार संबंधी नियम भी शामिल हैं।

    क्या महाशिवरात्रि पर प्याज और लहसुन खा सकते हैं?

    नहीं, महाशिवरात्रि के व्रत में प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके पीछे धार्मिक और आयुर्वेदिक दोनों कारण हैं।

    धार्मिक कारण:

    1. तामसिक भोजन: हिंदू धर्म में प्याज और लहसुन को तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा गया है। तामसिक भोजन मन और शरीर में नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है, जो व्रत और पूजा के उद्देश्य के विपरीत है।
    2. शुद्धता: व्रत के दौरान शुद्ध और सात्विक आहार लेने का महत्व है। प्याज और लहसुन को अशुद्ध माना जाता है, इसलिए इनका सेवन वर्जित है।

    आयुर्वेदिक कारण:

    1. मन की शांति: प्याज और लहसुन का सेवन मन को चंचल और अशांत बना सकता है। व्रत के दौरान मन को शांत और एकाग्र रखना आवश्यक है।
    2. शरीर की शुद्धि: व्रत का उद्देश्य शरीर और मन को शुद्ध करना होता है। प्याज और लहसुन शरीर में गर्मी और अशुद्धता पैदा कर सकते हैं।

    महाशिवरात्रि व्रत में क्या खाएं?

    महाशिवरात्रि के व्रत में सात्विक और हल्का आहार लेना चाहिए। कुछ विकल्प इस प्रकार हैं:

    1. फल: सेब, केला, संतरा, अनार आदि।
    2. दूध और दूध से बने उत्पाद: दही, पनीर, मखाना, खीर आदि।
    3. साबुदाना: साबुदाने की खिचड़ी या टिक्की।
    4. कुट्टू का आटा: कुट्टू की पूरी या पकौड़ी।
    5. मेवे: बादाम, किशमिश, अखरोट आदि।
    6. सेंधा नमक: सामान्य नमक की जगह सेंधा नमक का उपयोग करें।
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    निष्कर्ष

    महाशिवरात्रि के पवित्र दिन प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए। यह व्रत के नियमों के विपरीत है और इससे मन और शरीर की शुद्धता प्रभावित हो सकती है। इस दिन सात्विक आहार लेकर भगवान शिव की आराधना करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

    अचार्य अभय शर्मा एक अनुभवी वेदांताचार्य और योगी हैं, जिन्होंने 25 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय आध्यात्मिकता का गहन अध्ययन और अभ्यास किया है। वेद, उपनिषद, और भगवद्गीता के विद्वान होने के साथ-साथ, अचार्य जी ने योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की राह दिखाने का कार्य किया है। उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, योग, और वेदांत के सिद्धांतों की सरल व्याख्या मिलती है, जो साधारण लोगों को भी गहरे आध्यात्मिक अनुभव का मार्ग प्रदान करती है।

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