शिमला एग्रीमेंट Shimla Agreement से पाकिस्तान को क्या नुकसान होगा? शिमला एग्रीमेंट Shimla Agreement को बंद करने से पाकिस्तान की छवि पर बुरा प्रभाव देखने को मिल सकता है।
- पाकिस्तान की तरफ से समझौते को बंद करने का जो बयान आया है, वह पूरी तरह से एक राजनीतिक हथकंडा माना जा रहा है।
- यह न केवल एक गंभीर कूटनीतिक चूक है, बल्कि इससे पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी नकारात्मक असर पड़ा है, चलिए देख लेते हैं बड़ी खबर।
कौन से सिद्धांत पर आधारित है एग्रीमेंट
- भारत की ओर से पहले ही स्पष्ट कर दिया
- गया है कि कश्मीर मुद्दा एक द्विपक्षीय मसला है और इसका समाधान केवल भारत और पाकिस्तान के बीच ही बातचीत से आ सकता है।
- 1972 में जो समझौता तैयार किया गया था उसका मतलब यह था की दोनों देश के बीच में शांति का माहौल बनाकर रखना है। इसीलिए इसको तैयार किया गया था।
- पाकिस्तान अगर समझौते को रद्द करता है तों ऐसे में पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते और बिगड़ेंगे, इसके साथ-साथ वैश्विक मंच पर भी पाकिस्तान को अलग-थलग पड़ने का खतरा है।
- संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी ऐसे किसी देश को गंभीरता से नहीं लेतीं जो बार-बार अपने ही किए समझौतों से पीछे हटे।
- पाकिस्तान ऐसा करके साबित कर देगा की वह शांति समझौते पर भरोसा नहीं करता है।
पाकिस्तान हो सकता है कमजोर
अगर वाकई में समझौता रद्द हो जाता है तो ऐसे में भारत को मौका मिल सकता है की वह अपने राष्ट्रीय को सुरक्षित रखने के लिए और भी अच्छे फैसले ले सके और समाज को अच्छा संदेश दे सके। पाकिस्तान की यह रणनीति उसे कूटनीतिक रूप से और कमजोर कर सकती है।
अगर यह एग्रीमेंट रद्द हो जाता है तो न केवल ऐसे में भारत और पाकिस्तान के बीच बात करने के रास्ते बंद हो सकते हैं, बल्कि पाकिस्तान की विश्वसनीयता और शांति की मंशा पर भी सवाल उठेंगे। यह एक ऐसा निर्णय है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की स्थिति को और खराब कर सकता है। एक जमाने में इस एग्रीमेंट को शांति रखने के लिए बनाया गया था लेकिन आज इसका इस्तेमाल हथियार की तरह किया जा रहा है।
निष्कर्ष
इसलिए एग्रीमेंट के बंद होने से पाकिस्तान की छवि खराब हो सकती है और भविष्य में परेशानी हो सकती है। आसपास के बाकी सभी देशों के बीच में इस देश को लेकर बातचीत भी बंद हो सकती है और इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है।
