जीवित्पुत्रिका व्रत 2024: माताओं का संतान की लंबी उम्र के लिए श्रद्धा और समर्पण
जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति में माताओं द्वारा अपनी संतान की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन के लिए मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। वर्ष 2024 में, यह व्रत 25 सितंबर को मनाया जाएगा। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखकर अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य और स्वास्थ्य की कामना करती हैं। इस व्रत में जल भी नहीं ग्रहण किया जाता, जो इसे अत्यंत कठिन और श्रद्धायुक्त बनाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत का शाब्दिक अर्थ है ‘जीवित पुत्र के लिए व्रत’। इस व्रत का महत्व बच्चों के सुखी और लंबे जीवन के लिए माताओं के द्वारा किए जाने वाले अनुष्ठान में निहित है। हिंदू धर्म में माना जाता है कि माता की प्रार्थना और तपस्या संतान की रक्षा करने वाली होती है। यह व्रत भगवान जितवाहन को समर्पित है, जो जीवित आत्मा और संतान की सुरक्षा का प्रतीक माने जाते हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और इसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया गया है। यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से भी माताओं की दृढ़ता, प्रेम और त्याग का प्रतीक है। यह व्रत मातृत्व के उस महान स्वरूप को प्रदर्शित करता है जहाँ एक मां अपने बच्चों की भलाई के लिए कठिनाइयों का सामना करने को तैयार रहती है।
जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा
हिंदू पुराणों के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा महाभारत से जुड़ी हुई है। इस कथा में राजा जिमूतवाहन का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने अपनी निस्वार्थ भावना से नागराज के पुत्र को गरुड़ से बचाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। इस बलिदान से प्रसन्न होकर नागराज ने उन्हें जीवनदान दिया और उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इसी कारण इस व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है, और माताएं अपने बच्चों के लिए भगवान जितवाहन से इसी प्रकार के आशीर्वाद की कामना करती हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि
इस व्रत में तीन दिनों तक पूजन और व्रत का पालन किया जाता है। व्रत की शुरुआत पहले दिन से होती है जिसे नहाय-खाय कहा जाता है और दूसरे दिन व्रत का पालन किया जाता है। व्रत के तीसरे दिन इसे तोड़ा जाता है, जिसे पारण कहा जाता है। नीचे दिए गए चरणों में व्रत की विधि विस्तार से दी गई है:
- नहाय-खाय (पहला दिन): व्रत का प्रारंभ इस दिन से होता है। माताएं सुबह स्नान करके सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। इस दिन केवल शुद्ध और शाकाहारी भोजन किया जाता है ताकि शरीर और मन की शुद्धि हो सके।
- निर्जला व्रत (दूसरा दिन): इस दिन माताएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। बिना जल के पूरे दिन उपवास करना अत्यंत कठिन होता है, लेकिन माताएं इसे अपने बच्चों के लिए श्रद्धा और समर्पण के साथ निभाती हैं। दिनभर व्रत रखने के बाद शाम को पूजा की जाती है।
- पारण (तीसरा दिन): तीसरे दिन पारण किया जाता है, जिसमें व्रत को समाप्त किया जाता है। पारण से पहले पूजा की जाती है और भगवान जितवाहन को भोग अर्पित किया जाता है। इसके बाद व्रत तोड़ा जाता है और माताएं फलाहार करती हैं।
पूजा सामग्री (पूजा समाग्री)
जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि के लिए निम्नलिखित समाग्री की आवश्यकता होती है:
- दीपक (दीया)
- रोली (सिंदूर)
- चावल
- फूल
- पवित्र धागा (कलावा)
- फल
- पान के पत्ते और सुपारी
- मिठाई
पूजा के समय माताएं जीवित्पुत्रिका व्रत कथा का पाठ करती हैं, जिसमें जिमूतवाहन और उनके बलिदान की कथा का वर्णन किया गया है। इस कथा को सुनने और पढ़ने से व्रत की महिमा का अनुभव होता है और बच्चों के जीवन की रक्षा की प्रार्थना की जाती है।
जीवित्पुत्रिका व्रत 2024 का शुभ मुहूर्त
व्रत के दौरान शुभ मुहूर्त का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। वर्ष 2024 में, जीवित्पुत्रिका व्रत का शुभ मुहूर्त 25 सितंबर की सुबह है। इस दिन माताएं पूजा कर अपने व्रत का पालन करेंगी। हालांकि, स्थान और परिवार की परंपराओं के अनुसार शुभ मुहूर्त में थोड़ा बदलाव हो सकता है, इसलिए स्थानीय पंचांग या पुरोहित से परामर्श अवश्य करना चाहिए।
निर्जला व्रत का महत्व
जीवित्पुत्रिका व्रत में निर्जला व्रत रखना माताओं की असीम श्रद्धा और संकल्प का प्रतीक है। बिना जल के व्रत रखना अत्यंत कठिन होता है, परंतु यह माना जाता है कि इस प्रकार के कठोर व्रत से की गई प्रार्थनाएं अधिक फलदायक होती हैं।
यह व्रत माताओं की सहनशक्ति और संकल्प को प्रदर्शित करता है। शारीरिक त्याग के माध्यम से वे अपनी आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की कोशिश करती हैं। इस कठिनाई के बावजूद, उनकी एकमात्र इच्छा होती है कि उनकी संतान का जीवन सुखमय और दीर्घायु हो।
आधुनिक समय में जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
आज के आधुनिक समय में भी जीवित्पुत्रिका व्रत की महत्ता बनी हुई है। हालांकि कुछ माताएं स्वास्थ्य कारणों के चलते इस व्रत को पूरी तरह से न निभा पाएं, लेकिन इसका भावनात्मक और धार्मिक महत्व बरकरार रहता है। यह व्रत हमें त्याग, प्रेम, और मातृत्व की महानता की याद दिलाता है।
यह व्रत हमें यह सिखाता है कि चाहे समय कितना भी बदल जाए, माता का प्रेम और उसकी प्रार्थना हमेशा संतान की सुरक्षा और समृद्धि के लिए होती है।
निष्कर्ष: मातृत्व का अद्वितीय स्वरूप
जीवित्पुत्रिका व्रत माताओं के निस्वार्थ प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। इस व्रत के माध्यम से वे अपने बच्चों के जीवन की रक्षा के लिए भगवान से आशीर्वाद मांगती हैं। यह व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा है जो मां और संतान के संबंध को और भी मजबूत बनाती है।
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