कुंभ स्नान करने का तरीका

कुंभ में स्नान करने का सही तरीका क्या है जो पापों से दिलाए मुक्ति?

कुंभ स्नान एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जिसमें श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। यह विशेष रूप से महाकुंभ के दौरान होता है, जो हर 12 साल में आयोजित किया जाता है। यहाँ कुंभ स्नान करने के कुछ महत्वपूर्ण तरीके और विधियाँ दी गई हैं:

स्नान की तैयारी

  • तिथि का चयन: कुंभ स्नान के लिए सही तिथि का चयन करना आवश्यक है। महाकुंभ 2025 में शाही स्नान की प्रमुख तिथियाँ निम्नलिखित हैं:
    • पौष शुक्ल एकादशी: 10 जनवरी 2025
    • पौष पूर्णिमा: 13 जनवरी 2025
    • माघ कृष्ण एकादशी: 25 जनवरी 2025
    • माघ कृष्ण त्रयोदशी: 27 जनवरी 2025
    • माघ शुक्ल सप्तमी: 4 फरवरी 2025
    • माघ शुक्ल अष्टमी: 5 फरवरी 2025
    • माघ शुक्ल एकादशी: 8 फरवरी 2025
    • माघ शुक्ल त्रयोदशी: 10 फरवरी 2025

स्नान की विधि

  1. स्थान का चयन: कुंभ स्नान के लिए संगम (प्रयागराज) या अन्य पवित्र स्थानों का चयन करें।
  2. शारीरिक और मानसिक तैयारी:
    • स्नान से पहले ध्यान और प्रार्थना करें।
    • शरीर को साफ रखें और साधारण कपड़े पहनें।
  3. स्नान का समय:
    • स्नान प्रातः काल, विशेषकर सूर्योदय से पहले करना शुभ माना जाता है।
    • शाही स्नान के समय साधुओं के स्नान के बाद ही आम श्रद्धालुओं को स्नान करने की अनुमति होती है
  4. डुबकी लगाने की विधि:
    • नदी में प्रवेश करते समय ध्यान रखें कि कम से कम नाभि जल में डूबी हो।
    • पानी की ऊपरी सतह को हटाकर डुबकी लगाएं।
    • स्नान करते समय मुख सूर्य की ओर होना चाहिए।
    • आप तीन, पांच, सात या बारह डुबकियाँ लगा सकते हैं, जो आपके श्रद्धा पर निर्भर करता है
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स्नान के लाभ

  • कुंभ स्नान करने से सभी पाप समाप्त होने और मोक्ष की प्राप्ति का विश्वास होता है।
  • यह पितरों की शांति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है

निष्कर्ष

कुंभ स्नान केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आत्मिक शुद्धता और मोक्ष की प्राप्ति का एक साधन भी है। सही विधि और तिथियों का पालन करके श्रद्धालु इस पवित्र अवसर का लाभ उठा सकते हैं।

अचार्य अभय शर्मा

अचार्य अभय शर्मा एक अनुभवी वेदांताचार्य और योगी हैं, जिन्होंने 25 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय आध्यात्मिकता का गहन अध्ययन और अभ्यास किया है। वेद, उपनिषद, और भगवद्गीता के विद्वान होने के साथ-साथ, अचार्य जी ने योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की राह दिखाने का कार्य किया है। उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, योग, और वेदांत के सिद्धांतों की सरल व्याख्या मिलती है, जो साधारण लोगों को भी गहरे आध्यात्मिक अनुभव का मार्ग प्रदान करती है।

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