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शीतला माता की पूजा: लाभ, महत्व और कैसे करें सही पूजा | जानें शीतला माता की महिमा

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शीतला माता की पूजा से लाभ और महिमा

शीतला माता की पूजा: शुभ लाभ और पूजा की विधि

भारतीय संस्कृति में देवी-देवताओं की पूजा विशेष स्थान रखती है, और उनमें से एक महत्वपूर्ण देवी हैं शीतला माता। शीतला माता की पूजा न केवल रोगों से बचाव करती है, बल्कि परिवार के सदस्यों के बीच शांति और समृद्धि भी लाती है। खासकर बच्चों को बीमारियों से सुरक्षा देने के लिए शीतला माता की पूजा की जाती है। इस लेख में हम शीतला माता के महत्व, पूजा विधि, और उनसे मिलने वाले आशीर्वादों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

शीतला माता कौन हैं?

शीतला माता हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवी मानी जाती हैं, जिन्हें चेचक और अन्य रोगों से बचाने वाली देवी कहा जाता है। शीतला माता की पूजा विशेष रूप से भारत के उत्तर और पश्चिमी हिस्सों में होती है। उन्हें मुख्य रूप से वसंत ऋतु के अंत में और गर्मियों की शुरुआत में पूजा जाता है, ताकि ग्रीष्मकाल में फैलने वाली बीमारियों से बचा जा सके।

शीतला माता की पूजा का महत्व

शीतला माता की पूजा करने से कई लाभ होते हैं। सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे परिवार के सदस्यों को रोगों से सुरक्षा मिलती है। प्राचीन काल से ही, लोग शीतला माता की पूजा करके चेचक और अन्य संक्रामक रोगों से बचने का प्रयास करते आए हैं। यह भी माना जाता है कि शीतला माता की कृपा से परिवार में शांति और समृद्धि बनी रहती है।

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पूजा विधि: शीतला माता की पूजा कैसे करें?

शीतला माता की पूजा करने की विधि काफी सरल है, लेकिन इसे सही तरीके से करना बहुत महत्वपूर्ण है।

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  1. पूजा का दिन: शीतला माता की पूजा मुख्य रूप से शीतला सप्तमी के दिन की जाती है, जो होली के बाद आने वाले सप्ताह में पड़ता है।
  2. पूजा सामग्री: माता की पूजा में मुख्य रूप से ठंडी वस्त्र, जल, और बिना तली-भुनी हुई चीजें अर्पित की जाती हैं। माता को ठंडी चीजें ही चढ़ाई जाती हैं, क्योंकि यह प्रतीकात्मक रूप से बीमारियों को ठंडा करने का संकेत देती हैं।
  3. विधि:
    • प्रातःकाल उठकर स्नान कर लें और शीतला माता की मूर्ति या तस्वीर के सामने शुद्ध जल रखें।
    • माता को बिना पका हुआ भोजन, विशेषकर ठंडी पूरियां, हलवा और दही का भोग अर्पित करें।
    • माता को ठंडे जल से स्नान कराएं और उन्हें साफ वस्त्र अर्पित करें।
    • शीतला माता की आरती करें और उनके स्तोत्रों का पाठ करें।
    • अंत में, अपने परिवार के सदस्यों की रोगों से रक्षा और समृद्धि के लिए माता से प्रार्थना करें।

शीतला माता से जुड़े अनूठे नियम

शीतला माता की पूजा में कुछ विशेष नियम होते हैं जिन्हें ध्यान में रखना आवश्यक है:

  • शीतला सप्तमी के दिन किसी भी प्रकार का ताजा पका हुआ खाना नहीं खाया जाता। पूजा के एक दिन पहले खाना पकाया जाता है और अगले दिन वही अर्पित किया जाता है।
  • इस दिन घर में सफाई भी नहीं की जाती है, यह माना जाता है कि इससे बीमारियों को दूर रखने में मदद मिलती है।
  • देवी की पूजा में जल का विशेष महत्व होता है, इसलिए उन्हें शुद्ध जल से स्नान कराना आवश्यक है।

शीतला माता की कृपा से मिलते हैं ये लाभ

शीतला माता की पूजा से न केवल बीमारियों से बचाव होता है, बल्कि यह कई अन्य आशीर्वाद भी देती हैं:

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  • स्वास्थ्य: देवी की पूजा करने से परिवार के सभी सदस्य विशेष रूप से बच्चों को बीमारियों से सुरक्षा मिलती है।
  • समृद्धि: शीतला माता की कृपा से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
  • शांति: माता की आराधना करने से परिवार में शांति और आपसी प्रेम बना रहता है।
  • बाधाओं से मुक्ति: पूजा करने से जीवन की तमाम कठिनाइयों और बाधाओं से छुटकारा मिलता है।

शीतला माता की लोक मान्यताएं

शीतला माता से जुड़ी कई लोक मान्यताएं हैं जो उन्हें और भी खास बनाती हैं। गांवों में लोग मानते हैं कि शीतला माता गांव की रक्षा करती हैं और बीमारियों को गांव से बाहर रखने में मदद करती हैं। इसके अलावा, कई स्थानों पर शीतला माता को ‘ब्रह्माणी’ के रूप में भी पूजा जाता है, जो रोगों से मुक्ति दिलाने वाली शक्ति का प्रतीक हैं।

निष्कर्ष

शीतला माता की पूजा सदियों से भारतीय परंपरा का हिस्सा रही है। देवी की कृपा से न केवल रोगों से मुक्ति मिलती है, बल्कि यह परिवार में शांति और समृद्धि का भी प्रतीक है। शीतला माता की पूजा विधि सरल है, लेकिन इसे सही तरीके से करने से इसके आशीर्वाद का लाभ उठाया जा सकता है। यदि आप भी अपने परिवार को रोगों से सुरक्षित रखना चाहते हैं, तो शीतला माता की पूजा अवश्य करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सुख-समृद्धि से भरपूर बनाएं।

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अचार्य अभय शर्मा एक अनुभवी वेदांताचार्य और योगी हैं, जिन्होंने 25 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय आध्यात्मिकता का गहन अध्ययन और अभ्यास किया है। वेद, उपनिषद, और भगवद्गीता के विद्वान होने के साथ-साथ, अचार्य जी ने योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की राह दिखाने का कार्य किया है। उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, योग, और वेदांत के सिद्धांतों की सरल व्याख्या मिलती है, जो साधारण लोगों को भी गहरे आध्यात्मिक अनुभव का मार्ग प्रदान करती है।

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