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    येलो फेस्टिवल – बसंत पंचमी का रंगीन जश्न!

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    बसंत पंचमी और पीला रंग – जानिए इस परंपरा का रहस्य!

    बसंत पंचमी को येलो फेस्टिवल कहा जाने का मुख्य कारण इसका गहरा संबंध पीले रंग से है, जो इस त्योहार का प्रतीक है। यहाँ कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं:

    पीले रंग का महत्व

    • ऊर्जा और समृद्धि: पीला रंग ऊर्जा, खुशी और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह वसंत ऋतु के आगमन को दर्शाता है, जब प्रकृति में नई ऊर्जा और जीवन का संचार होता है।
    • सरसों के फूल: भारत में बसंत पंचमी के समय सरसों के खेतों में पीले फूल खिलते हैं, जो इस मौसम की विशेषता है। यह दृश्य वसंत की खुशहाली और जीवन के नवीनीकरण को दर्शाता है।
    • ज्ञान और विद्या: देवी सरस्वती, जो ज्ञान, संगीत और कला की देवी हैं, अक्सर पीले वस्त्र पहनती हैं। इस प्रकार, पीला रंग ज्ञान और विद्या का प्रतीक बन जाता है।

    त्योहार की परंपराएँ

    • पीले वस्त्र पहनना: इस दिन लोग विशेष रूप से पीले कपड़े पहनते हैं, जो उत्सव की खुशी और देवी सरस्वती के प्रति श्रद्धा को दर्शाते हैं।
    • पीले व्यंजन: इस अवसर पर पीले रंग के व्यंजन जैसे खिचड़ी, केसर हलवा, और अन्य मिठाइयाँ बनाई जाती हैं। ये व्यंजन न केवल स्वादिष्ट होते हैं बल्कि इस त्योहार की शुभता को भी दर्शाते हैं।
    • पूजा विधि: पूजा के दौरान देवी सरस्वती को पीले फूल, फल और मिठाइयाँ अर्पित की जाती हैं। लोग अपने अध्ययन सामग्री को भी मां के चरणों में रखते हैं ताकि उन्हें ज्ञान प्राप्त हो सके।

    निष्कर्ष

    इस प्रकार, बसंत पंचमी को येलो फेस्टिवल कहा जाता है क्योंकि यह पीले रंग के माध्यम से ऊर्जा, समृद्धि, ज्ञान और वसंत ऋतु के आगमन का जश्न मनाता है। यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देता है।

    अचार्य अभय शर्मा एक अनुभवी वेदांताचार्य और योगी हैं, जिन्होंने 25 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय आध्यात्मिकता का गहन अध्ययन और अभ्यास किया है। वेद, उपनिषद, और भगवद्गीता के विद्वान होने के साथ-साथ, अचार्य जी ने योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की राह दिखाने का कार्य किया है। उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, योग, और वेदांत के सिद्धांतों की सरल व्याख्या मिलती है, जो साधारण लोगों को भी गहरे आध्यात्मिक अनुभव का मार्ग प्रदान करती है।