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    सिर्फ एक व्रत और भगवान की अनंत कृपा: षटतिला एकादशी

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    षटतिला एकादशी: सिर्फ एक व्रत से पाएं भगवान का आशीर्वाद!

    षटतिला एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। यह एकादशी माघ मास के कृष्ण पक्ष में आती है। इस दिन भगवान विष्णु की उपासना विशेष फलदायी मानी जाती है। शास्त्रों में इसे ‘षटतिला एकादशी’ नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि इस व्रत में तिल का छह प्रकार से उपयोग होता है। ये उपयोग तिल के सेवन, दान, स्नान, उबटन, हवन और पूजन में होते हैं। इस एकादशी को करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।

    षटतिला एकादशी का महत्व

    षटतिला एकादशी को पवित्रता और मोक्ष प्रदान करने वाला व्रत माना गया है। यह व्रत केवल शरीर को शुद्ध करता है, बल्कि आत्मा को भी पवित्रता प्रदान करता है। इस दिन व्रत और भगवान विष्णु की पूजा करने से मनुष्य को सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिलती है। विशेष रूप से जो व्यक्ति दरिद्रता, रोग या मानसिक कष्ट से पीड़ित हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी है।

    शास्त्रों के अनुसार, षटतिला एकादशी व्रत करने से पिछले जन्मों के पाप भी समाप्त हो जाते हैं। यह व्रत दान की महत्ता को भी समझाता है। तिल का दान करने से पुण्य में वृद्धि होती है और यह भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

    व्रत की विधि

    षटतिला एकादशी व्रत को पूर्ण श्रद्धा और नियमों के साथ किया जाता है।

    1. व्रत से एक दिन पहले दशमी तिथि को सात्विक भोजन ग्रहण करें और अशुद्ध विचारों से बचें।
    2. एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
    3. भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीप जलाकर पीले फूल, तिल, गंगा जल और तुलसी दल अर्पित करें।
    4. विष्णु सहस्रनाम, भगवद गीता या एकादशी व्रत कथा का पाठ करें।
    5. तिल का उपयोग छः प्रकार से करें – तिल से स्नान, तिल का दान, तिल से हवन, तिल का उबटन, तिल का सेवन और तिल का पूजन।
    6. दिनभर उपवास रखें और रात को जागरण कर भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें।
    7. अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत का पारण करें।
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    षटतिला एकादशी की कथा

    पुराणों में षटतिला एकादशी की एक प्राचीन कथा का वर्णन है। एक समय भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि एक ब्राह्मणी, जो भक्ति और व्रत करती थी, लेकिन उसने कभी भी दान नहीं किया। जब वह मृत्यु के पश्चात स्वर्ग पहुंची, तो उसे खाली घर में रहना पड़ा। उसने भगवान से इसका कारण पूछा। तब भगवान ने बताया कि दान न करने के कारण उसे ऐसा फल मिला। भगवान ने उसे षटतिला व्रत करने का निर्देश दिया। इस व्रत के फलस्वरूप उसने पुण्य प्राप्त किया और स्वर्ग के सभी सुखों का अनुभव किया।

    षटतिला व्रत का निस्कर्ष

    षटतिला एकादशी हमें भक्ति, संयम और दान का महत्व समझाती है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है, बल्कि यह सिखाता है कि समाज के प्रति दान और सेवा का योगदान कितना आवश्यक है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का यह सरल और प्रभावी उपाय है। यदि मनुष्य पूर्ण श्रद्धा से इस व्रत को करे, तो उसके जीवन के समस्त कष्ट दूर हो सकते हैं और ईश्वर की कृपा सदा बनी रहती है।

    अतः षटतिला एकादशी व्रत को धर्म, भक्ति और पुण्य का प्रतीक मानते हुए करना चाहिए। यह व्रत न केवल भगवान की कृपा दिलाने वाला है, बल्कि हमारे जीवन को भी सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।

    अचार्य अभय शर्मा एक अनुभवी वेदांताचार्य और योगी हैं, जिन्होंने 25 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय आध्यात्मिकता का गहन अध्ययन और अभ्यास किया है। वेद, उपनिषद, और भगवद्गीता के विद्वान होने के साथ-साथ, अचार्य जी ने योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की राह दिखाने का कार्य किया है। उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, योग, और वेदांत के सिद्धांतों की सरल व्याख्या मिलती है, जो साधारण लोगों को भी गहरे आध्यात्मिक अनुभव का मार्ग प्रदान करती है।