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    विष्णु पुराण के अनुसार षटतिला एकादशी के नियम

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    षटतिला एकादशी: विष्णु पुराण में उल्लिखित विशेष नियम और उनके लाभ

    परिचय: षटतिला एकादशी हिंदू धर्म के प्रमुख व्रतों में से एक है, जो माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। विष्णु पुराण में इस एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना और तिल का उपयोग विभिन्न रूपों में करने का विधान है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से व्यक्ति के पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए विष्णु पुराण के आधार पर इस एकादशी के नियम और इसके महत्व को समझते हैं।

    षटतिला एकादशी के नियम:

    1. निर्जला व्रत का पालन: षटतिला एकादशी के दिन व्रतधारी को निर्जला व्रत करना चाहिए। यदि स्वास्थ्य कारणों से निर्जला व्रत संभव न हो, तो केवल फलाहार करें। इस व्रत में मन, वचन और कर्म की पवित्रता बनाए रखना अति आवश्यक है।
    2. तिल का छः प्रकार से उपयोग: इस एकादशी का नाम ‘षटतिला’ इसलिए है क्योंकि इसमें तिल का छः प्रकार से उपयोग किया जाता है। यह छः प्रकार के उपयोग इस प्रकार हैं:
      • तिल से स्नान: व्रतधारी को तिल के जल से स्नान करना चाहिए। यह शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए उपयोगी है।
      • तिल का दान: गरीबों, ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को तिल का दान करना चाहिए।
      • तिल युक्त भोजन: इस दिन व्रतधारी को तिल युक्त भोजन ग्रहण करना चाहिए।
      • तिल से हवन: अग्नि में तिल अर्पित कर हवन करना चाहिए।
      • तिल का जल में उपयोग: तिल को जल में मिलाकर पवित्र नदी या जल स्रोत में अर्पित करना चाहिए।
      • तिल से पिंडदान: पितरों के लिए तिल का उपयोग करते हुए पिंडदान करें।
    3. सत्य और संयम का पालन: व्रतधारी को इस दिन झूठ बोलने, क्रोध करने, और अहंकार जैसे दोषों से बचना चाहिए। मन, वचन और कर्म से पवित्रता बनाए रखना इस व्रत का एक प्रमुख नियम है।
    4. भगवान विष्णु की पूजा: इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करना अनिवार्य है। विष्णु पुराण में बताया गया है कि इस व्रत के दिन भगवान विष्णु को तिल, गुड़ और जल अर्पित करना चाहिए। ‘विष्णु सहस्रनाम’ का पाठ करना और भगवान को दीप प्रज्वलित कर तुलसी पत्र चढ़ाना अत्यंत फलदायी होता है।
    5. दान का महत्व: षटतिला एकादशी पर दान का विशेष महत्व है। इस दिन तिल, गुड़, अन्न, कपड़े और धन का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि दान से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और उसे लोक-परलोक में सुख प्राप्त होता है।
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    षटतिला एकादशी का महत्व: विष्णु पुराण के अनुसार, इस व्रत को करने से व्यक्ति अपने जीवन में आध्यात्मिक उन्नति करता है। यह व्रत पापों के प्रायश्चित और आत्मा की शुद्धि का मार्ग प्रदान करता है। तिल का उपयोग शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक है। तिल, जो ऊर्जा और शुद्धता का प्रतीक है, इस दिन के हर अनुष्ठान में शामिल किया जाता है।

    निष्कर्ष: षटतिला एकादशी केवल धार्मिक व्रत नहीं है, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने और भगवान विष्णु के प्रति भक्ति भाव प्रकट करने का एक उत्तम अवसर है। इसके नियमों का पालन कर व्यक्ति अपने पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है। इस व्रत का पालन न केवल आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी यह व्यक्ति को दान और संयम के महत्व को समझाता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को श्रद्धा और विश्वास के साथ इस व्रत को करना चाहिए।

    अचार्य अभय शर्मा एक अनुभवी वेदांताचार्य और योगी हैं, जिन्होंने 25 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय आध्यात्मिकता का गहन अध्ययन और अभ्यास किया है। वेद, उपनिषद, और भगवद्गीता के विद्वान होने के साथ-साथ, अचार्य जी ने योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की राह दिखाने का कार्य किया है। उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, योग, और वेदांत के सिद्धांतों की सरल व्याख्या मिलती है, जो साधारण लोगों को भी गहरे आध्यात्मिक अनुभव का मार्ग प्रदान करती है।

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