Twentieth Chapter विंश अध्याय

Ashtavakra Gita | अष्टावक्र गीता – Twentieth Chapter | विंश अध्याय

अष्टावक्र गीता(मूल संस्कृत)अष्टावक्र गीता(हिंदी भावानुवाद)Ashtavakra Gita (English)
जनक उवाच –
क्व भूतानि क्व देहो वा
क्वेन्द्रियाणि क्व वा मनः।
क्व शून्यं क्व च नैराश्यं
मत्स्वरूपे निरंजने॥२०-१॥
राजा जनक कहते हैं – मेरे निष्कलंक स्वरुप में पाँच महाभूत कहाँ हैं या शरीर कहाँ है और इन्द्रियाँ या मन कहाँ हैं, शून्य कहाँ है और निराशा कहाँ है ॥१॥King Janak says: In stainless Self, there are no five matter-elements or body, no sense organs or mind, no emptiness or despair. 1॥
क्व शास्त्रं क्वात्मविज्ञानं
क्व वा निर्विषयं मनः।
क्व तृप्तिः क्व वितृष्णत्वं
गतद्वन्द्वस्य मे सदा॥२०- २॥
सदा सभी प्रकार के द्वंद्वों से रहित मेरे लिए क्या शास्त्र हैं और क्या आत्म-ज्ञान अथवा क्या विषय रहित मन ही है, क्या प्रसन्नता है या क्या संतोष है ॥२॥For me who is ever free from dualism, there are no scriptures or self-knowledge, no attached mind, no satisfaction or desire- lessness . 2॥
क्व विद्या क्व च वाविद्या
क्वाहं क्वेदं मम क्व वा।
क्व बन्ध क्व च वा मोक्षः
स्वरूपस्य क्व रूपिता॥२०- ३॥
क्या विद्या है या क्या अविद्या, क्या मैं है या क्या वह है और क्या मेरा है, क्या बंधन है और क्या मोक्ष है या स्वरुप का क्या लक्षण है ॥३॥There is no knowledge or ignorance, no ‘me’, ‘this’ or ‘mine’, no bondage or liberation, and no characteristic of self-nature. 3॥
क्व प्रारब्धानि कर्माणि
जीवन्मुक्तिरपि क्व वा।
क्व तद् विदेहकैवल्यं
निर्विशेषस्य सर्वदा॥२०- ४॥
क्या प्रारब्ध कर्म हैं और क्या जीवन मुक्ति है, सर्वदा विशेषता(परिवर्तन) से रहित मुझमें क्या शरीरहीन कैवल्य है ॥४॥In unchanging me, there is no fateful actions or liberation during life and no bodiless enlightenment. 4॥
क्व कर्ता क्व च वा भोक्ता
निष्क्रियं स्फुरणं क्व वा।
क्वापरोक्षं फलं वा क्व
निःस्वभावस्य मे सदा॥२०- ५॥
सदा स्वभाव से रहित मुझमें कौन कर्ता है और कौन भोक्ता, क्या निष्क्रियता है और क्या क्रियाशीलता, क्या प्रत्यक्ष है और क्या अप्रत्यक्ष ॥५॥Without a nature, there is no doer or reaper of actions, no inaction or action, nothing visible or invisible. 5॥
क्व लोकं क्व मुमुक्षुर्वा
क्व योगी ज्ञानवान् क्व वा।
क्व बद्धः क्व च वा मुक्तः
स्वस्वरूपेऽहमद्वये॥२०- ६॥
अपने अद्वय (दूसरे से रहित) स्वरुप में स्थित मेरे लिए क्या संसार है और क्या मुक्ति की इच्छा, कौन योगी है और कौन ज्ञानी, कौन बंधन में है और कौन मुक्त ॥ ६ ॥Established as non-dual reality, there is no world or desire for liberation, no yogi or seer, no-one bound or liberated. 6॥
क्व सृष्टिः क्व च संहारः
क्व साध्यं क्व च साधनं।
क्व साधकः क्व सिद्धिर्वा
स्वस्वरूपेऽहमद्वये॥२०- ७॥
अपने अद्वय (दूसरे से रहित) स्वरुप में स्थित मेरे लिए क्या सृष्टि है और क्या प्रलय, क्या साध्य है और क्या साधन, कौन साधक है और क्या सिद्धि है ॥७॥Established as non-dual reality, there is no creation or annihilation, what is to be achieved or what are the means, who is seeker and what is achievement. ॥7
क्व प्रमाता प्रमाणं वा
क्व प्रमेयं क्व च प्रमा।
क्व किंचित् क्व न किंचिद्
वा सर्वदा विमलस्य मे॥२०- ८॥
विशुद्ध मुझमें कौन ज्ञाता है और क्या प्रमाण (साक्ष्य) है, क्या ज्ञेय है और क्या ज्ञान, क्या स्वल्प है और क्या सर्व ॥८॥There is no knower or evidence, nothing knowable or knowledge, nothing less or non-less in forever pure Self. 8॥
क्व विक्षेपः क्व चैकाग्र्यं
क्व निर्बोधः क्व मूढता।
क्व हर्षः क्व विषादो वा
सर्वदा निष्क्रियस्य मे॥२०- ९॥
सदा निष्क्रिय मुझमें क्या अन्यमनस्कता है और क्या एकाग्रता, क्या विवेक है और क्या विवेकहीनता, क्या हर्ष है और क्या विषाद॥९॥There is no distraction or focus, no right discrimination or delusion, no joy or sorrow in always action-less Self. 9॥
क्व चैष व्यवहारो वा
क्व च सा परमार्थता।
क्व सुखं क्व च वा दुखं
निर्विमर्शस्य मे सदा॥२०- १०॥
सदा विचार रहित मेरे लिए क्या संसार है और क्या परमार्थ, क्या सुख है और क्या दुःख ॥१०॥There is not this world or the other, no happiness or suffering for Self, who is eternally free from thoughts. 10॥
क्व माया क्व च संसारः
क्व प्रीतिर्विरतिः क्व वा।
क्व जीवः क्व च तद्ब्रह्म
सर्वदा विमलस्य मे॥२०- ११॥
सदा विशुद्ध मेरे लिया क्या माया है और क्या संसार, क्या प्री ति है और क्या विरति, क्या जीव है और क्या वह ब्रह्म ॥११॥There is no Maya or world, no attachment or detachment, no living beings or that God for forever pure Self. ॥11
क्व प्रवृत्तिर्निर्वृत्तिर्वा
क्व मुक्तिः क्व च बन्धनं।
कूटस्थनिर्विभागस्य
स्वस्थस्य मम सर्वदा॥२०- १२॥
अचल, विभागरहित और सदा स्वयं में स्थित मेरे लिए क्या प्रवृत्ति है और क्या निवृत्ति, क्या मुक्ति है और क्या बंधन ॥१२॥For me who is forever unmovable and indivisible, established in Self, there is no tendency or renunciation, no liberation or bondage. ॥12
क्वोपदेशः क्व वा शास्त्रं
क्व शिष्यः क्व च वा गुरुः।
क्व चास्ति पुरुषार्थो वा
निरुपाधेः शिवस्य मे॥२०- १३॥
विशेषण रहित, कल्याण रूप, मेरे लिए क्या उपदेश है और क्या शास्त्र, कौन शिष्य है और कौन गुरु, और क्या प्राप्त करने योग्य ही है ॥१३॥There is no sermon or scripture, no disciple or guru, nothing is to be achieved for ever blissful and non-special Self . 13॥
क्व चास्ति क्व च वा नास्ति
क्वास्ति चैकं क्व च द्वयं।
बहुनात्र किमुक्तेन
किंचिन्नोत्तिष्ठते मम॥२०- १४॥
क्या है और क्या नहीं, क्या अद्वैत है और क्या द्वैत, अब बहुत क्या कहा जाये, मुझमें कुछ भी(भाव) नहीं उठता है॥१४॥  There is no existence or non-existence, no non-duality or duality. What more is there to say? Nothing arises out of me. 14॥
See also  Ashtavakra Gita | अष्टावक्र गीता - Fifth Chapter | पंचम अध्याय

अचार्य अभय शर्मा

अचार्य अभय शर्मा एक अनुभवी वेदांताचार्य और योगी हैं, जिन्होंने 25 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय आध्यात्मिकता का गहन अध्ययन और अभ्यास किया है। वेद, उपनिषद, और भगवद्गीता के विद्वान होने के साथ-साथ, अचार्य जी ने योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की राह दिखाने का कार्य किया है। उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, योग, और वेदांत के सिद्धांतों की सरल व्याख्या मिलती है, जो साधारण लोगों को भी गहरे आध्यात्मिक अनुभव का मार्ग प्रदान करती है।

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