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भीष्म पितामह ने 58 दिनों तक मृत्यु का इंतजार क्यों किया? जानिए इस रहस्य के पीछे की कहानी!

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भीष्म पितामह और उत्तरायण का रहस्य।

महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह का नाम सुनते ही एक वीर, बलिदानी और धर्मात्मा पुरुष की छवि सामने आ जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि युद्ध के मैदान में बाणों की शैय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह ने 58 दिनों तक मृत्यु का इंतजार क्यों किया? इस सवाल का जवाब आपको चौंका सकता है। इस ब्लॉग में हम आपको इस रहस्य से रूबरू कराएंगे और समझेंगे कि भीष्म पितामह के इस निर्णय के पीछे क्या कारण थे।

प्रश्न: भीष्म पितामह ने 58 दिनों तक मृत्यु का इंतजार क्यों किया?

भीष्म पितामह ने 58 दिनों तक मृत्यु का इंतजार इसलिए किया क्योंकि उन्हें “इच्छा मृत्यु” का वरदान प्राप्त था। यह वरदान उन्हें उनके पिता राजा शांतनु ने दिया था, जिसके अनुसार भीष्म तब तक नहीं मर सकते थे जब तक वे स्वयं अपनी मृत्यु का चयन न करें। महाभारत के युद्ध में जब पांडवों ने कौरवों के खिलाफ विजय प्राप्त की, तब भीष्म पितामह बाणों की शैय्या पर लेटे हुए थे। लेकिन उन्होंने तुरंत मृत्यु का वरण नहीं किया, बल्कि सूर्य के उत्तरायण काल का इंतजार किया। सनातन धर्म में उत्तरायण काल को अत्यंत शुभ माना जाता है और ऐसा कहा जाता है कि इस समय में मृत्यु प्राप्त करने से आत्मा सीधे मोक्ष को प्राप्त करती है।

प्रश्न: उत्तरायण और दक्षिणायन में क्या अंतर है?

उत्तरायण और दक्षिणायन सूर्य के दो महत्वपूर्ण काल हैं। उत्तरायण वह समय है जब सूर्य मकर संक्रांति के बाद उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ता है। इसे अत्यंत शुभ माना जाता है और इस समय में मृत्यु प्राप्त करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं, दक्षिणायन वह समय है जब सूर्य कर्क संक्रांति के बाद दक्षिणी गोलार्ध की ओर बढ़ता है। इस समय को शुभ नहीं माना जाता, और इस समय में मृत्यु प्राप्त करने से आत्मा को पुनर्जन्म के चक्र में वापस आना पड़ता है।

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प्रश्न: भीष्म पितामह ने उत्तरायण का इंतजार क्यों किया?

भीष्म पितामह ने उत्तरायण का इंतजार इसलिए किया क्योंकि वे एक धर्मात्मा और ज्ञानी व्यक्ति थे। उन्हें पता था कि उत्तरायण में मृत्यु प्राप्त करने से उनकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होगी और वे पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाएंगे। उनके लिए यह सिर्फ मृत्यु नहीं थी, बल्कि आत्मा की मुक्ति का समय था। इसी कारण उन्होंने 58 दिनों तक बाणों की शैय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण काल का इंतजार किया।

प्रश्न: भीष्म पितामह की मृत्यु का यह रहस्य हमें क्या सिखाता है?

भीष्म पितामह की मृत्यु का यह रहस्य हमें सिखाता है कि जीवन में हर काम का एक सही समय होता है। धैर्य, ज्ञान और सही समय का महत्व समझने वाले व्यक्ति जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं। भीष्म पितामह ने हमें यह भी सिखाया कि धर्म और कर्तव्य के पालन में जो व्यक्ति निष्ठावान होता है, उसे अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।

प्रश्न: क्या महाभारत के अन्य पात्रों ने भी ऐसा कोई निर्णय लिया था?

महाभारत के कई पात्रों ने अपने जीवन में कठिन निर्णय लिए थे, लेकिन भीष्म पितामह का निर्णय सबसे अद्वितीय था। उनकी “इच्छा मृत्यु” का वरदान और उनका धर्म के प्रति निष्ठावान होना उन्हें अन्य पात्रों से अलग बनाता है। उनके जीवन के इस प्रसंग से हमें धर्म, कर्तव्य और समय की महत्वता का ज्ञान प्राप्त होता है।

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निष्कर्ष:

भीष्म पितामह का 58 दिनों तक मृत्यु का इंतजार करना एक गहरा रहस्य था जो हमें जीवन के महत्वपूर्ण पाठ सिखाता है। यह सिर्फ एक योद्धा की कहानी नहीं है, बल्कि यह धैर्य, धर्म और समय की शक्ति का प्रतीक है। उनकी इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि जीवन में सही समय पर सही निर्णय लेना कितना महत्वपूर्ण है।

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अचार्य अभय शर्मा एक अनुभवी वेदांताचार्य और योगी हैं, जिन्होंने 25 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय आध्यात्मिकता का गहन अध्ययन और अभ्यास किया है। वेद, उपनिषद, और भगवद्गीता के विद्वान होने के साथ-साथ, अचार्य जी ने योग और ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की राह दिखाने का कार्य किया है। उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, योग, और वेदांत के सिद्धांतों की सरल व्याख्या मिलती है, जो साधारण लोगों को भी गहरे आध्यात्मिक अनुभव का मार्ग प्रदान करती है।

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